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दीन पस्योपम, वहांपर ज० पल्योपमके आठमे भाग, उ• एक पल्योपम लक्षवर्ष साधिक, सौधर्म देवलोकमें जावे तो यहांसे मार एक पल्योपम और इशान देव लोकमें साधिक एक पल्योपम उस तीन पल्योपमवाला जावे वहां पर भी न० उ० इसी माफी स्थिति पावे । मवापेक्षा जघन्योत्कृष्ट दोय भव करे। भावार्य युगलीया कि जीतनी स्थिति हो उससे अधिक स्थिति देवलोकने नहीं मीलती है और देवतोंसे पीच्छा युगलीया नहीं होते है वास्ते दोय भव करते है।
(७) पांच स्थावर मरके पांच स्थावरमें जावे स्थिति यहांसे तथा वहांपर अपने अपने स्थान माफीक पावे । भव च्यार स्थावरमें जावे तो ज० दोय भव । उ० असंख्याते भव करे । काल न. दोय अन्तर महुर्त उ० असंख्यत काल । पांच स्थावर वनास्पतिमें जावे तो ज. दोय भव । • उ० अनन्ते भव करे। काल ज० दोय अन्तर महुर्त उ० भनन्तो काल लागे । एवं आने अपेक्षा भी समझना ।
(८) पांच स्थावर मरके तीन वैकलेन्द्रियमें जावे तो भव ज० दोय भव उ० संख्याते मव करे। काल म० दोय अन्तर महुर्त उ० संख्यातो काल कागे । स्थिति यहांसे तथा वहांपर स्व स्व स्थानकि समझना । एवं माने अपेक्षा। ... (९) पांच स्थावर मरके तीर्यच पांचेन्द्रिय तथा मनुष्यमें नावे । स्थिति स्व स्व स्थान प्रमाणे । भव म० दोय उ. आठ भव करे। एवं आने अपेक्षा । काल ज. दोय अन्तर महुर्त ३० दोनों स्थानकि उत्कृष्ट स्थितिसे भिन्न भिन्न उपयोगसे कहना।