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ना करी, उसे बहुतवार मासिक कहते है. अगर मायारहित निकपट भावसे आलोचना करी हो, तो उसे मासिक प्रायश्चित्त देवे.
(१२) मायासंयुक्त आलोचना करनेसे दोमासिक प्रायश्चित्त होता है. भावना पूर्ववत्.
(१३) एवं बहुतसे दोमासिक प्रायश्चित्त स्थान सेवन कर- .. नेसे मायारहितवालोंको दोमासिक आलोचना.
(१४) मायासहितको तीन मासिक आलोचना. यावत् बहुतसे पांच मासिक, मायारहित आलोचनासे पांच मास, मायासहित आलोचना करनेसे छे मासका प्रायश्चित्त होता है. सूत्र २० हुवे. भावना प्रथम सूत्रकी माफिक समझना.
(२१), मासिक, दो मासिक, तीन मासिक, च्यार मासिक, पांच मासिक, और भी किसी प्रकारके प्रायश्चित्त स्थानोंको सेवन कर मायारहित आलोचना करनेसे मुल सेवा हो. उतनाही प्रायश्चित्त होता है. जैसे एक मासिक यावत् पांच मासिक.
( २२ ) अगर माया-कपटसे संयुक्त आलोचना करे, उसे मूल प्रायश्चित्तसे एक मास अधिक प्रायश्चित्त होता है. यावत् मायारहित हो, चाहे मायासहित हो, परन्तु छे माससे अधिक प्राय. श्चित्त नहीं है. अधिक प्रायश्चित्त हो, तो पहलेकी दीक्षा छेदके नवी दीक्षाका प्रायश्चित्त होता है. एवं दो सूत्र बहुवचनापेक्षा भी समझना. २३-२४ सूत्र हुवे.
(२५), च्यार मासिक, साधिक चातुर्मासिक, पंच मासिक, साधिक पंच मासिक प्रायश्चित्त स्थान सेवन कर मायार. हित आलोचना करे, उसे मूल प्रायश्चित्त देवे.
(२६) मायासंयुक्त आलोचना करनेसे पांच मास, साधिक