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( १२ ) अस्वाध्याय के समय किसी विशेषकारणसे
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तीन पृच्छना ( प्रश्न) से अधिक पूछे. ३
भावार्थ - अधिक पूछना हो तो स्वाध्यायके कालमें
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चाहिये.
पूछना
(१३) एवं दृष्टिवाद - अंगकी सात पृच्छना ( प्रश्न ) से अधिक पूछे. ३
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( १४ ) च्यार महान् महोत्सबकी अन्दर स्वाध्याय करे. ३ यथा - इंद्र मदोत्सव, चैत शुक्ल १५ का, स्कन्ध महोत्सव, आषाढ शुक्ल १५ का. यक्ष महोत्सव, भाद्रपद शुक्ल १५का, भूतमहोत्सव कार्तिक शुक्ल १५ का. इस प्यार दिनोंमें मूल सूत्रोंका पठन पाठन करना साधुको नहीं कल्पै. *
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( १५ ) च्यार महा प्रतिपदा - वैशाख कृष्ण १, श्रावण कृष्ण १, आश्विन कृष्ण १, मागशर कृष्ण १. इस प्यार दिनों में मूल सूत्रोंका पठन पाठन करना नहीं कल्पै.
( १६ ) स्वाध्याय पोरसीमें स्वाध्याय न करे. ३
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( १७ ) स्वाध्यायका व्यार काल है. उसमें स्वाध्याय न करे. ३ भावार्थ – स्वाध्याय - ' सos grafaमुक्खाणं ' मुनिको स्वाध्याय ध्यान में ही मग्न रहना चाहिये. चित्तवृति निर्मल रहै. प्रमादका नाश कर्मोंका क्षय और सद्गतिकि प्राप्तीका मौख्य कारण स्वाध्यायही है.
* श्री स्थानांगजी सूत्र - चतुर्थ स्थाने–आश्विन शुक्ल १५ को यक्ष महोत्सव कहा हैं. उस अपेक्षा कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा महा पडिवा होती हैं. इस वास्ते दोनों आगमोंको बहुमान देते हुवे दोनों पूर्णिमा, दोनों प्रतिपदाको अस्वाध्याय रखना चाहिये तत्त्व केवलीगम्य.