________________
२९६ (७७ ) ,, अन्तरारहित पृथ्वी ( सचित्त ) ऐसे स्थानमें वस्त्रको आताप देवे. ३
( ७८ ) एवं सचित्त रज पर वस्त्रको आताप देवे. (७९) कचे पाणीसे स्निग्ध पृथ्वीपर वस्त्रको आताप देके.३
(८०) सचित्त शिला, कांकरा, कोलडीये जीवों काझाला, काष्टसंगृहीत जीव, इंडा, बीजादि जीव व्याप्त भूमिपर वस्त्रको आताप देवे. ३
(८१) घरके उंबरेपर, देहलीपर.
( ८२ ) भिंतपर छोटे खदीयापर यावत् आच्छादित भूमिपर वस्त्रको आताप देवे.३
(८३) मांचा, माला, प्रासाद, शिखर, हवेली, निसरणी, आदि उर्ध्वस्थान पर वस्त्रको आताप देवे.
भावार्थ-ऐसे स्थानोंपर वस्त्रको ओताप देने में देते लेते स्वयं आप गिर पडे, वस्त्र वायुके मारा गिर पडे, उसे आत्मघात, संयमघात, परजीवधात-इत्यादि दोषोंका संभव है.
(८४), वस्त्रकीअन्दर पूर्व पृथ्वीकाय बन्धी हुइथी, उसको निकाल कर देवे. ३ उस वस्त्रको ग्रहन करे. ३
। ८५ ) एवं अप्काय कचा जलसे भीजा हुवा तथा पाणीके मंघटेसे.
(८६ ) एवं तेउकाय संघटेसे. ( ८७ ) एवं वनस्पतिकायसे. ( ८८ ) एवं औषधि, धान्य, बीजादि.
(८९) एवं त्रस प्राणी-जीवोंसहित तथा गमनागमन करबायके.