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( ३३ ) चौर, बील, पारधीयोंका उपद्रवस्थान, वैर, खार, क्रोधादिसे हुवा उपद्रव युद्ध, महासंग्राम, क्लेशादिके स्थानोंको.
( ३४ ) नाना प्रकारके महोत्सवकी अन्दर बहुतसी खीर्यो, पुरुषों, युवक, वृद्ध, मध्यम वयवाले, अनेक प्रकारके वस्त्र, भूषण, चंदनादिसे शरीर अलंकृत बनाके केइ नृत्य, केइ गान, केह हास्य, विनोद, रमत, खेल, तमासा करते हुवे, विविध प्रकारका अशनादि भोगवते हुवेको देखने जानेका मनसे अभिलाष करे, करावे. करतेको अच्छा समझे.
(३५), इस लोक संबंधी रुप ( मनुष्य- स्त्रीका ), परलोक संबंधी रुप, (देव-देवी, पशु आदि) देखे हुवे, न देखे हुवे, सुने हुवे, न सुने हुवे, ऐसे रूपोंकी अन्दर रंजित, मूच्छित, गृद्ध हो देखनेकी मनसे भी अभिलाषा करे. ३
भावार्थ - उपर लिखे सब किसमके रुप, मोहनीय कर्मकी उदीरणा करानेवाले है. जैसे एक दफे देखनेसे हरसमय वह ही हृदयमें निवास कर ज्ञान, ध्यानमें विघ्न करनेवाले बन जाते है. वास्ते मुनियोंको किसी प्रकारका पदार्थ देखनेकी अभिलाषा तक भी नहीं करना चाहिये.
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( ३६ ) प्रथम पोरसी में अशनादि व्यार प्रकारका आहार लाके उसे चरम पोरसी तक रखे. ३
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(309) जिस ग्राम, नगर में आहार ग्रहन कीया है, उ सको दों कोशसे अधिक ले जावे. ३
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( ३८ ) किसी शरीर के कारण से गोबर लाना पडता हो, पहले दिन लाके दुसरे दिन शरीरपर बांधे.
( ३९ ) दिनको लाके रात्रिमें बांधे.