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૨૨૭ भावार्थ-सदाचारी जो दुराचारीकी संगत करेगा तो लोगोंमें अप्रतीतिका कारण होगा. इति.
उपर लिखे १६८ बोलोंसे कोई भी बोल साधु साध्वी सेवन करेंगे तो लघु मासिक प्रायश्चित्तके भागी होंगे. प्रायश्चित्तकी विधि वीसवां उद्देशासे देखे.
इति श्री निशिथसूत्र-चौथा उद्देशाका संक्षिप्त सार.
(५) श्री निशिथसूत्र—पांचवां उद्देशा.
(१) 'जो कोइ साधु साध्वी ' सचित्त वृक्षका मूल-वृक्षका मूल जमीनमें रहता है, कन्द (झडों) जमीनमें पसरती है. स्कन्धजमीनके उपर जिसको मूल पेड कहते है. उस मूल पेडसे चोतरफ च्यार हाथ जमीन सचित्त रहती है. कारण-उस जमीनके नीचे कन्द ( झडो) पसरी हुइ है. यहांपर सचित्त वृक्षका मूल कहा है, वह उसी अपेक्षा है कि पसरी हुइ झडों तथा वह मूल उपरकी सचित्त भूमि उपर कायोत्सर्ग करना, संस्तारक बिछाना और बैठना यह कार्य करे. ३
(२) एवं वहां खडा होके एक बार वृक्षको अवलोकन करे तथा बार बार देखे. ३
(३) एवं वहांपर बैठके अशनादि च्यार आहार करे. (४) एवं टटी पैसाब करे. ३ .
(५) एवं स्वाध्याय पाठ करे.३ ... (६) एवं शिष्यादिको ज्ञान पढावे. ३
(७) एवं अनुज्ञा देवे. ३