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२२६ विगैरह डालके रात्रि समय जल रखते है. शायद रात्रिमें उटी पैसाबका काम पड जावे तो उस जलसे शुचि कर सके.*
(१६४),, टटी पैसाब जाके पाणीसे शुचि न करे, न करावे, न करते हुवेको अच्छा समझे. वह मुनि प्रायश्चितका भागी होता है.
(१६५ ) जिस जगहपर टटी पैसाब कीया है, उस टटो पैसाबके उपर शुचि करे. ३
(१६६ ) जिस जगह टटी पैसाब कीया है, उससे अति दूर जाके शुचि करे. ३
(१६७ ) टटी पैसाब कर शुचिके लीये तीन पसली अर्थात् जरुरतसे अधिक पाणी खरच करे. ३ .
भावार्थ-टटी पैसाबके लीये पेस्तर सुकी जगह हो, वह भी विशाल, निर्जिव देखना चाहिये. जहांपर टटी बैठा हो वहांसे कुछ पावोंसे सरक शुचि करना चाहिये. ताके समूच्छिम जीवोंकी उत्पत्ति न हो. अशुचिका छांटा भी न लगे और जल्दी सुक भी जावे. यह विधि बादका कथन है.
(१६८), प्रायश्चित्त संयुक्त साधु कभी शुद्धाचारी मुनिको कहे कि-हे आर्य! अपने दोनों साथही में गौचरी चले, साथ हीमें अशनादि च्यार प्रकारका आहार लावे. फिर बादमें वा आहार भेट ( विभाग कर ) अलग अलग भोजन करेंगे. ऐसे वच नोंको शुद्धाचारी मुनि स्वीकार करे, करावे, करतेको अच्छा समझे, वह मुनि प्रायश्चित्तका भागी होता है.
* ढुंढीये और तेरापन्थी लोग रात्रि समय पाणी नहीं रखते है. तो इस पाठव पालन कैसे कर सकते होंगे? और रात्रिम टटी पैसाब होनेपर क्या करते होंगे ?