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२२३ ( २५), अगर कोई साध्वीयोंके विशेष कारण होनेपर साधुको साध्वीयोंके उपाश्रय जाना पडे तो अविधि ( पहले साध्वीयोंको सावचेत होने योग संकेत करे नहीं ) से प्रवेश करे. ३
भावार्थ-एकदम चले जानेसे न जाने साध्वीयों किस अब. स्थामें बैठी है.
(२६), साध्वी आनेके रहस्तेपर साधु दंडा, लठ्ठी, रजो. हरण, मुखवत्रिकादि कोई भी छोटी बडी वस्तु रखे. ३
भावार्थ-अगर साधु ऐसा जाने कि-यह रखे हुवे पदार्थको ओळंगके साध्वी आवेगी, तो उसको कहेंगे-हे साध्वी ! क्या इसी माफिक ही पूजन प्रतिलेखन करते होंगे? इत्यादि हांसी या अपमान करे. ६
(२७) ,, क्लेशकारी बातें कर नये क्रोधको उत्पन्न करे. ३
(२८) ,, पुराणा क्रोधको खमतखामणा कर उपशांत कर दीया हो, उसे उदीरणा कर क्रोधको प्रज्वलित बनावे. ३
(२९) ,, मुंह फाड फाडके हंसे. ३
(३०), पासत्थे ( भ्रष्टाचारी) को अपना साधु दे के उन्होंका संघाडा बनावे. अर्थात् उसको साधु देके सहायता करे.३
(३१) एवं उसके साधुको लेवे. ३ - (३२-३३) एवं दो अलापक ' उसन्न' क्रियासे शिथिलका भी समझना.
(३४-३५) एवं दो अलापक 'कुशीलों' खराब आचारवा. लोंका समझना.
(३६-३७) एवं दो अलापक नितिया' नित्य एक घरके