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( ४ ) एवं राजाका अर्थी होना. ३
इसी माफिक प्यार सूत्र राजाके रक्षण करनेवाले दिवानप्रधान आश्रित कहना. ५-८
इसी माफिक च्यार सूत्र नगर रक्षण करनेवाले कोटवालका भी कहना. ९-१२
इसी माफिक प्यार सूत्र निग्रामरक्षक ( ठाकुरादि ) आश्रित कहना. १३-१६
एवं च्यार सूत्र सर्व रक्षक फोजदारादिक आश्रित कहना. पवं सर्व २० सूत्र हुवे.
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भावार्थ - मुनि सदैव निःस्पृह होते है. मुनिया के लीये राजा और रंक सदृश ही होते है. " जहा पुन्नस्त कत्थइ, तहा तुच्छस्स कत्थइ अगर राजाको अपना करेगा, तो कभी राजाका कहना ही मानना होगा. ऐसा होने से अपने नियममें भी स्खलना पहुंचेगा वास्ते मुनियोंको सदैव निःस्पृहतासे ही विचरना चाहिये (यहां ममत्वभावका निषेध है. )
( २१ ) अखंड औषधि ( धान्यादि) भक्षण करे. ३
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भावार्थ - अखंड धान्य सचित्त होता है. तथा सुंठादि अखंsaमें जीवादि भी कबी कबी मिलते है. वास्ते अखंडित औषधि खानेकी मना है.
( २२ ) ( २३ )
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( २४ ) hts गृहस्थ ऐसे भी होते है कि साधुवोंके लीये आहार पाणी स्थापन कर रखते है. ऐसे घरोंकी याच पुछ, गवेषणा कीये विगर साधु नगर में गौचरी निमित्त प्रवेश करे. ३
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आचार्योपाध्याय के विना दीये आहार करे ३.
आचार्योपाध्यायके बिना दीये विगइ भोगवे . ३
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