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(५०) हे भगवाई यह जीव उदिरण करता है तो क्या भय आये कोंकि उदिरण करे । उदय नहीं आये कोंकि बदिरणा करे, कि उदय माने योग्य कर्मोकि उदिरण करे ।
(0) उदय माने योग्य कर्मोंकि उदरण करे शेषकि नहीं।
(6) उदिरणों करता है सो क्या उस्थानादिसे करता है। या विनों उत्थानादि कर्म करनेसे करता है जेसे गोसालावत् । . (उ) जीव उदिरणा करता है वहा उस्थानादिसे करते है ।
(१) उस्थान-जैसे उठके खडा हाना । ' (२) कर्म-इदर उटर फोरना =फैकना ।
(३) बल-शरीरकी गक्त (सक्ती) (४) वीर्य-जीवका उत्साव भाव ।
(५) पुरुषार्थ पाक्रम होम्मत । - यहांपर गौसालादिके मत्तका निराकार किया है क्युकि गौसा
लके मतमें उस्थानादि · नहीं माना जाता है वास्ते इन्होंका खंडन किया है।
(घ) कांक्षा मोहनिय कर्मको उपशमाता है तो क्या उदय माये हुवेको उपशमाता है या उदय नहीं आयाको उपशमाता है कि उदय आने योग्यको उपशमाता है। .. (उ) उदय नहीं आयेको उपशमाता है कारण उदय आने. चालेको तो वेदना ही पडेगा और उदय भानेवाले अवश्य उदय आवेगा वास्ते उदय नहीं आया हुवेकों ही उपशमावे वह भी पूर्ववत उस्थानादिसे उपशमावे। ...........