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. इसी माफीक कांक्षा मोहनिय वा परन्तु उदय आये हवेको न वेदे । एवं निर्जरा परन्तु उदय या पीछे वेदके निर्जरा करते है सो मी पूर्ववत् उस्थानादिसे निकर ममञ्चय जीवका अलापक कहा है इसाफीक नजर
देना परन्तु एकेन्द्रिय बक लेकिन निसंज्ञा तथा इतनी प्रज्ञा नहीं है कि वह जीव कांक्षा में जानके वेद, निर्जरा, करे परन्तु अव्यक्तपणे...
कांक्षा मोहनिय कर्म बन्ध उदय उदिरणा वेदे और निज्जरा हो.
माती है क्युंकि बन्धक मिथ्यात्वादिका सदभव हैं इति ॥ शम्
सवं भंते सेवं भते तमाम