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(७८) . (प्र) वीर्य कीस कारणसे उत्पन्न गता है।
(उ) वीर्य शरीरसे होता है । तेजस कारमाण यह दो शरी, तो जीवोंके अनादी कालसे संबन्धवाला है । परन्तु औदारिकादि शरीरके साथ सकरण वीर्यका धनष्ट न वास्ते वीर्यका कारण शरीर है। . (५) शरीरको उत्पन्न कोन करता है ?
(उ०) शरीरकों जीव इत्पन्न करता है। क्युकि जीवके अनादिकालसे कर्मोका सबन्ध है और कर्मोसे अच्छा तथा खराब अध्यवसाय होता है.। उस निमत्तकारणसे नयेनये शरीरको धारण करते है वास्ते शरीर उत्पन्न करनेमे निमत्त कारण जीव ही है।
(प्र०) हे भगवान् । इस शुद्ध निनानन्द चैतन्यके, शरीर, वीर्य, योग, प्रमाद, क्यो होता है।
(उ) हे गौतम ! इस जीवके खीर नीर, तीलतेल, कना पाषाण, की माफीक, जडतासे संयोग है उन्होंसे उस्थांन कर्म बड़ वीर्य पुरुषार्थ इन्होंकि प्रेरणासे शरीर, वीर्य, योग, और प्रमादको प्राप्ती हो जीव कांक्षा मोहनिय कर्म बांधता है।
(प्र०) हे भगवान् ! कांक्षा मोहनिय कर्मकि उदिरणा कोन करता है ? ". (उ०) हे गौतम । यह जीव स्वयं ही करता है। इसी माफीक कांक्षा मोहनिय कर्मकि गृहना (निंदा) भी स्वयं करता है। क्षोपशम मारसे माते हुवे कांक्षा मोहनिक कप दलकको रोकावट भी स्वयं जीव ही करता है। .. ... ..