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________________ (७५) जेसे दीवाल (भीस) बनानेके लिये खडे (पत्थर) चुनादि न करते है इसी माफीक कर्मकधमे भी कर्मपद्दल अनुभाग रस.. मादि समग्री एकत्र होती है उसीकों शास्त्रकारोंने 'चय' काहा 1 जेसे च्यार कालापेक्ष समुच्चय जीव और चौवीस दंडकके . १०० अलापक बन्धके बतलाये है इसी माफीक "चय" का भी १०० मलापक समझना। ___जेसे खड़ा चुनादि लेपसे मनबुत बन्ध करते है इसी माफीक धर्मपुद्गल भी अनुभाग रससे अजबुत बन्ध करते है उसको शास्त्रकारों "उपचय" कहेते है इसीका भी पूर्ववत् १०० अलापक होता है एवं ३०० अलापक हुवे । ___जो कर्म दलक उदयमें नहीं आये है परन्तु उदय माने योग्य है उन्होंको किसी प्रकार के निमत्त कारणसे उदयावलिकाके अन्दर ले माना उसे शास्त्रकारोंने " उदिरण" कहा है। वह भी पूर्ववत् “ सबसे सर्व " चोथा भागासे होती है। समुच्चय जीन और चौवीस दंडक एवं १५ सुत्र, भूतकालके, २५ सुत्र भविष्यकालके, २५ सुत्र, वर्तमानकालके । एवं ७५ अलापक समझना परन्तु यहा समुच्चयकाल नहीं गीना है कारण ' उदिरणामें औषकालकी आवश्यक्ता नहीं होती है।। ___जो कर्म दलक अवादा काल पक जानेसे स्वभावीक उदय भाते है तथा निमित्त कारणसे उदिरणाकर उदयमें लाते है जब जीवकर्म दल विपाकरस सुख तथा दुःख रूप अनुभव करते है उसको शास्त्रकारोंने " वेदे " काहा है उदिणकि माफीक इसका मी ७५ अलापक होता है।
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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