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थोकडानाबद १६ सूत्र श्री भगवतीजी शतक १ उमेशो ३
. (कांक्षा मोहनिय ) (प.) हे भगवान् ! श्रमण निनाथ ( साधु ) भि कांक्षा मोहनिय कर्मकों वेदते है अर्थात् जिन वचनों में शंका कांक्षाकरते है ?
(उ०) हे गौतम : व.बी कमी साधु भी कांक्षामोहनिवेदते है।
(प्र०) हे दयाला । क्या कारण हैं सो साधु भि कांक्षामोह निवेदे। . (उ०) हे गौतम । सर्वज्ञ प्रणित शास्त्र अति गंभिर स्याद्वाद उत्सर्गोपवाद सामान्य विशेष गौणमौरव नय निक्षप प्रमाणकर भने आन्त बाद है कीसी पदार्थका कीसी सबंधसे एक स्थानपर सामान्य विवरण कीया है, उसी पदार्थका कीसी संबन्ध पर विशेष व्याख्यान किया हों जिम्मे भि नयज्ञानकी गति बड़ी ही दुर्गम्य है कि साधारण मुनियोंको गुरुगम्य विनों समझमें आना मुशकिल हो जाता है । जब एक ही पदार्थका भिन्न स्थलों पर भिन्न भिन्न अधिकार देखके साधुवोंको भी शंका उत्पन्न हो जाती है तब वह कांक्षा मोहनियको वेदने लग जाते है कि यह बात कीस तरह होगा । इत्यादि । इसीका संक्षप्तसे यहां पर उलेख किया जाता है।
(१) ज्ञान विषय शंका । ज्ञान पांच प्रकारके है. जिसमें अवधिज्ञान तीसरे नम्बरमें है वह जघन्य अंगुलके असंख्यात भाग और. उत्सव सम्पुरण लोकके रूपी पदार्थोके जानते है और चोथा