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________________ (६५) नम्बरमें मनःपर्यव है वह केवल अढाइद्विप दोय समुद्रमें रहे हुवे संज्ञी पांचेन्द्रियके मनोगत भावकों ही जानता है । यहापर शंका उत्पन्न होती है कि जब सम्पुर्ण लोकके रूपी पदार्थोकों अविधि शान जानता है तो मनोद्रव्य भी रूपी है उस्कों भी अवधिज्ञानगाला जानशक्ता है तो फीर मनःपर्यव ज्ञानको अलग कहनेका क्या कारण है । अल्पज्ञ मुनि एसी शंका वेदते है। इसी माफोक सर्व स्थानपर समझना । ___ समाघांन-अवधिज्ञान और मनःपर्यवज्ञान दोनोंका स्वभाव स्वामि और विषय भिन्न भिन्न है । मनःपर्यवज्ञानका स्वभाव केवल मनपणे प्रणम्य पुद्गलोंकों ही देखनेका है स्वामि अपमतमुनि है विषय अढाइ द्विपकि है और भि इसका महात्व है कि किसी दर्शन कि साहित्य नहीं है आप स्वतंत्र अधिकारी है । अवधिज्ञान का स्वभाव रूपी द्रव्य देखने का है। स्वामि च्यारों गतिके जीव है विषय जघन्य अंगुलके असंख्यते भाग उत्कष्ट सम्पुणे लोकको देखे परन्तु अवधिज्ञानके साथ अवधिदर्शन कि पूर्ण साहित्य है। जास्ते मनःपर्यवज्ञान अलग है ओर अवधिज्ञान अलग है । ____ (२) दर्शन विषय शंका-क्षोपशमसमकित सामान्यतासे उदयप्रकृतिका क्षय और अनोदय प्रकृतीयोंका उपशमाना होता है और औपशम समकित जो सर्व प्रकृतियोंका उपशम करता है। एसा होनेपर भी क्षोपशम असंख्याते वार आति है और उपशम. पांचवारसे अधिक नही आति । यह शंका उत्पन्न होती है । -: समाधान-क्षोपशम समक्ति, जो अनोदय उपशम है वह विपाकों उपशम है परन्तु प्रदेशो मिथ्यात्व रहता है और
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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