________________
(१२)
थोकड़ा नं. १६
श्री भगवती सूत्र श० ३ उ० ३ ( ४९ चौमंगी )
(प्र०) हे भगवान अनगार, भवित्तात्मा, अवधिज्ञान, संयुक्त, अपने ध्यान में खड़ा है वहांसे एक देवता, वैक्रय, समुदघात, कर मानमें बैठके जा रहा था उस वैमान सहित देवताको वह भावित आत्मा मुनि जानता है ।
( उ ) वह मुनि उस देवता और बैमानको चार प्रकारसे देख शक्ता है यथा
C
(१) देवताको देखे किन्तु वैमानको न देखे (२) देवताको न देखे किन्तु वैमानको देखे
(३) देवताको देखे और वैमानको भी देखे (४) देवता को भी न देखे और वैमानको भी न देखे कारन अवधिज्ञान विचित्र प्रकारका होता है एवं देवी वैमानके साथ एवं देवी देवता वैमानके साथ ३
(प्र) भवितात्माका घणी ( अवधिज्ञानवान ) एक वृक्ष है उसके अन्दरका सत्व जाने या बाहिरकी त्वचा जाने ? (१) अन्दरसे जाने बाहिरसे न जाने
(१) अन्दर से न जाने बाहिरसे जाने
(१) अन्दर से जाने बाहिरसे भी जाने (१) अन्दरसे नहीं जाने बाहिरसे भी नहीं जाने कारन अवधिज्ञानके असंख्याते भेद होते हैं इसके लिये नन्दी सूत्रमे