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________________ ( ६१ ) सम्पूर्ण भरत प्रमाणे कहना एवं सर्प परन्तु विष जंबूद्वीप प्रमाणे और मनुष्य में अढईद्वीप ( मनुष्य लोक ) प्रमाणे विष कहना | कर्म आसविष तपश्चर्यादिसे जिसको आसीदिष लब्धी उत्पन्न होती है उसकी पृच्छा | हे भगवान ! कर्म आसीविष क्या नारकीको होता है । तिर्यच, मनुष्य देवताओंको भी होता है ? नारकी में नहीं होता किंतु तिर्यंच, मनुष्य, देवताओं में होता है जिसमें तिर्यंच में केवल संज्ञी पचेंद्री प्रर्माप्ति को होता है और मनुष्य में संज्ञी पंचेंद्री संख्याते वर्ष आयुषवालोंको होता है। देवताओं में लब्धी मासीविष नहीं है परन्तु मनुष्य, तिर्यचमें आसी विष लब्धी उत्पन्न होती है और वह तिर्यंच लब्धी सहित मृत्यु पाके देवता में उत्पन्न होता है, वहां पर अपर्यप्ती अवस्था में पूर्व Haider of met for कहा जाता है वे भुवनपती, व्यन्तर, ज्योतिषो यावत् आठवें देवलोक तक देवतापने होते है कारण तीची गती आठवें देवलोक तक है । इति । इस विषयको ज्ञानायोंने जाना है परंतु छदमस्त नहीं देखते। दश बोल छदमस्त नहीं जानते यथा धर्मास्थिकाय, अघर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, शरीर रहित जीव, परमाणु, पुद्गल, शब्दके पुद्गल, गंधके पुद्गल और वायु काय यह जीव जिन होगा मान होगा यह जीव मोक्ष जावेगा या न जावेगा । इति १० बोल केवली देखे । सेवं सेव भंते तमेव सचम् ।
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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