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थोकडा नं० १२ श्री भगवती सूत्र श० १ उद्देशो ९
(अगरुं लघु) - (प्र.) हे भगवान् । जीव भारी ( कर्मकरके ) किस कारनसे होता है ? - (उ०) प्रणातिपात (जीवहिंसा : मृषावाद ( झूठ बोलना) अदत्ता दान ( चोरी ) मैथून, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान ( झूठा कलंक ) पैशुन । चुगली) रति, मरति, पर परिवाद, माया मृषाबाद, और मिथ्यात्व शल्य इन अठारह पापस्थानसे जीव भारी होता है।
(५०) हे भगवान् । जीव हलका कीस कारनसे होता है ? . (उ०) पूर्वोक्त अठारह पापस्थानका घिरमण ( निवृति) करनेसे जीव कर्मले हलका होता है।
(५०) हे भगवान् ! जीव संसारकी वृद्धि किपसे करता है ? (उ०) अटारह. पापस्थानके सेवन करनेसे (५०) हे भगवान् ! संसारका परत जीव किससे करता है ? (उ०) अठारह पापस्थानसे निवृति होनेसे (प्र०) दीर्घ संसार किससे करता है ? (उ०) अठारह पापस्थानके सेवन करनेसे (१०) अल्प संसार किससे करता है ?
(उ०) अठारह पापस्थानसे निवृत्त हानेसे .' (प्र०) संसारमें परिभ्रमण किससे करता है ?
(उ०) अठारह पापस्थानके सेवन करनेसे