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(प्र०) संसारसे कैसे तरता है ? ( उ० ) अठारह पापस्थान से निवृत्त होने से अगरुलघुके ४ भांगे |
(१) गरु== पत्थरादि (९) लघु = घूमादि
निश्चय नयकी अपेक्षा
सबसे हलका और सबसे
भारी द्रव्य नहीं हो सक्ता
कारन जो अरुपी और
(३) गुरुलघु = वायु आदि (४) अगरु लघु = भाकाशादि चार स्पर्शवाले द्रव्य हैं वे अगरुलघु होते हैं और शेष माठ स्पर्शवाले रुपी द्रव्य, गुरुलघु होते हैं। परंतु व्यवहार नयकी अपेक्षा पूर्ववत गुरु, लघु, गुरुलघु, जगरुलघु, ये चार भागे बन सक्ते हैं इस लिये यहां व्यवहार नयकी अपेक्षासे कहते हैं ।
(प्र०) हे भगवान् ! सातमी नरकका आकाशान्तर में गुरु, आदि चार भागों में से कौनसे भागे में हैं ?
( उ ) ०
केवल एक अगरुलघु भागा है शेष तीन मार्ग नहीं । (प्र) ० सातमी नारकी तन वायुकी पृच्छा ?
( उ ) ० गुरुरघु है शेष तीन भागे नहीं । एवं घन वायु, धनोदधि, और पृथ्वी पिंड भी समझना । यह पांच बोल सातमि नारकीके कहे हैं। इसी तरह सातो नारकीके ५-५ वोल लगा. - वैसे ३५ बोल हुवे । जिसमें सात भाकाशांतर में चोथा भागा। - शेष २८ बोलों में तीसरा भागा एवं असंख्यात द्वीप और असंख्याता समुद्र में भी तीजा भांगा समझना ।
नरकादि १४ दंडक के जीव और कार्मण शरीरकी अपेक्षा चौथा भांगा समझना । शेष अपने २ शरीरापेक्षा तीसरा भागा पावे ।