________________
(४७)
किया करना निष्फल है इसीसे हयार भक्रिय मत्त ही ठीक है। - नैयायिक मत्त एक इश्वर ही को जीव मानते हैं शेष
पंचभुत बादियोंका मत्त है कि पंचभुतसे ही यह पण्ड (नीवात्मा) बनता है जैसे कि ।
(१) पृथ्वी तत्वसे-हाड हाडकिमीनी दान्तादि । (२) अपतत्वसे-लोही (रौद्र) मेदचरबी आदि। (३) तेनस तत्वसे-तेजस या जेष्टाराग्नि । (३) वायु तत्वसे-श्वासोश्वासादिका लेना। (५) आकाश तत्वसें सबको स्थानका देना।
इन्ही पांचों तत्वसे पुतला बनता है और यह तत्व अपने अपने रूपमें भी मीलनानेपर पुन्य पाप रूपी मुख दुःखका भुक्त कोई भी नहीं होगा वास्ते क्रिया, कष्ट सामन्य है और मेरा हो मानना ठीक है।
क्षणकबादीयोंका मत्त है कि जीवादि सर्व पदार्थ क्षणक्षणमे उत्पन्न होते है और क्षणक्षणमें नष्ट होता है जब सर्व पदार्थ ही क्षणक्षणमें पलटते जाते हैं तो पुन्य पाप कोन करे और कोन भुक्ते वास्ते क्रिया करना कष्ट ही है । इत्यादि । _ अक्रियावादीयोंका ८४ मत्त है।
(१) कालबादी (२) स्वभाववादी (३) नियतबादी (४) पूर्वकर्मवादी (५) पुरुषार्थवादी इन्होंका विस्तार क्रियावादीयों कि माफीक समझना परन्तु यह लोक भौख्तामें क्षणक्षणमें पदार्यका उत्पन और विनास होना मानते है और छटा यद् इच्छा (ना.