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(४६) . बादी जीवको अपनि अपेक्षासे नित्य मानते है (२) दुसरे काल. बादी जीवकों अपनी आपेक्षा अनित्य मानते हैं (३) तीसरा कालबादी पर की अपेक्षा जीवकों नित्य मानते है (४) चौथा कालबादी परकी अपेक्षा नीवकों अनित्यमानते है इसी माफोक अभीव पुन्य पाप आश्रव संबर निर्जरा बन्ध मोक्ष इन्ही नव पदार्थोंकों च्यार च्यार प्रकारसे माननेसे ३६ मत्त कालवाद योंके है इसी माफीक स्वभावबादीयोंके ३६ नियत बादीयोंके २६ पूर्व कर्मवादीयोंके ३६ पुरुषार्थ वादीयोंका ३६ सर्व मीलके १८. भेद क्रियवादीयोंके होते है।
(२) अक्रियावादी प्रक्रियावादीयोंके मत्त है कि साधनकार्योंमें क्रियाकि आवश्यक्ता नहीं है। किया तो वालजीवोंको पापका भय और पुन्यकि लालचा देखाके केवल पक तरहका कष्ट ही देना है इन्हीं कष्टसे कोई भी प्रयोजन साधन नहीं होता है वस्ते हमारा मत्त ही श्रेष्ट है कि अक्रियसे ही सिद्धि होती है
इन्हीं अक्रिय बादियोंके भी अनेक मत्त है जैसे।
मीमंसि मतवालोकि मान्यता है कि सर्व लोक व्यापत आत्मा एक ही है और अलग २ शरीरमें जैसे हमार पात्र में पाणी है ओर एक ही चन्द्रका प्रतिबिंब सब पात्रों में देखाई देते है, इसी माफीक एक आत्मा अलग २ शरीरमें दीखाई देते है। जब आत्मा (ईश्वर) का एकेक अंस घरीरमें दीखाई देता है वह पुनः इश्वरके रूपमें समा झावेगा तब मुख दुःख रूपी जो पुण्य पाप कहे जाते है उसका मुक्ता कोई भी नहीं रहेगा कारण पाप तथा पुन्य करनेवाला तो इश्वरके रूपमें मील जावेगा। वास्ते कष्ट
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