SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४८) स्मात्र) अर्थात् इच्छानुस्वार पदार्थ होते है एवं ६ बादीयों स्वपक्ष जीवोंको अनित्य मानते है और छे बादीयो परपक्ष जीवोंको अनित्य मानते है एवं १२ बादीयोंकि जीव मन्यता है इसी. माफीक अजीव अश्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध, और मोक्ष, इस साव तत्वको १२ बादीयों अलग अलग मानते है वास्ते बारहकों सात गुणा करनेसे ८४ मत होते है अक्रियावादी पुन्य और पापकों नहीं मानते है शेष ७ तन्वमानते है। (३) अज्ञानबादी-अज्ञानवादीका मत है कि जगतमें अज्ञान है वह ही अच्छा है कारण अज्ञान बालोंको कभी रागद्वेषरूपी संकल्प विकल्प न होते है एसा होनेसे अध्यवशायों का मलीनपणा भी नहीं होता है वास्ते अज्ञान ही अच्छा है और ज्ञान तो प्रसिद्ध ही कर्मबन्धका हेतु है कारण दुनियोंके अन्दर जो ज्ञानी है उन्होंके सन्मुख कोई भी अनुचित कार्य करता होगा तो ज्ञानीयोंको अवश्य संकल्प विकल्प होगा देखिये यह केसा मूर्ख आदमि है कि अनुचित कार्य करता है और भी हिताहितका विचारमें ही आयुष्य पुरण कर देता है अर्थात ज्ञानीयोंका चित्त स्थिर रहेना असंभव है और चित्त कि चंपलता है वह ही कर्म बन्धका हेतु है यह बातों नितिकारोंन भी स्वीकारकरी है कि मनानसे किसी प्रकारका गुन्हा हूवां हो तो इतनी शक्त सज्जा नहीं होती है और जानके नुकशाना किया हो उन्होंकों शक्त सजा होती हैं वास्ते अज्ञान ही अच्छा यह हमारा मनना सुन्दर है। .. अझानबादीयोंका ६७ मत्त है। ..... (१) जीबका सत्यपणा (९) जीवका असत्यपणा (३) जीवका
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy