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कारण एक पदार्थमें अनेक धर्म है उन्होंको स्याहाद द्वारा कथन करनेसे ही धर्मोसे ज्ञात हो शक्ते है परन्तु जगतमे कितनेक अल्पज्ञ अपनि मान प्रतिष्टा न करानेके लिये अपने मनमें आई ऐसी ही परूपणाकर विचारे मुग्धजीवोंको हठकदाग्रहमें डालके दीर्घ संसारके पात्र बना देते हैं वास्ते पेस्तर वस्तु धर्मको समझनेकि खास जरूरत है कि कोनसे मत्तवाले तत्वोंकों कीस रीतीसे मानते है और ऐसा मानने में क्या युक्ति या परिमाण है । यद्यपि इसी विषयमें बहुतसे ग्रन्थ बना हूवा है परन्तु साधारण मनुष्य स्वल्प परिश्रमद्वारा ही लाभ उठाशके इस वास्ते यहां पर संक्षेप्तसे ही ३६३ मतोंका हम परिचय करा देते है।
समौसरण च्गर प्रकार के है।
(१) क्रियाबादी (२) अक्रियाबादी (३) अज्ञानबादी (४) विनयबादी । अब इन्होंका विवरण करते हैं ।
(१) क्रियाबादीयोंका मत्त है कि जो जीवोंकों सद्गति प्राप्ती होती है यह क्रियावोंसे ही होती है। किन्तु ज्ञानादिसे नही कारण पत्थरकि शोला चाहे कीतने ही चित्रोंसे चित्री हुई क्यों न हो परन्तु पाणी में रखने पर तो वह शीघ्र ही रसतलका राज ही करेगी अर्थात् पाणीमें डुब जावेगी इसी माफीक कीतना ही ज्ञान क्यु न पढ़ा हो परन्तु मरने पर तो अधोगति ही होगा । वास्ते क्रिया ही प्रधान है एसी परूपणा क्रिया बादीयों. कि है और उन्होंके भी तो १८० मत अलग अलग है यथा (१) कालबादी (२) स्वभाववादी (३) नियतवादी (४) पूर्व कर्म- . बादी (१) पुरुषार्थबादी।