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(१) कालबादीयोंका मत्त काळवादी कहते हैं कि सर्व पदार्थों कि उत्पति कालसे ही होती है जैसे कालसे ओरतों गर्भधारण करती है, कालसे ही पुत्रका जन्म होता है कालहीसे वह पुत्र चलता है, बोलता है युवक होता है वृद्ध होता है, कालहीसे दुद्धका दही बनता है, कालसे ही षट् ऋतुवोंका भिन्न भिन्न परिणाम होना फलका देना और इन्ही जगतके अन्दर अवतारी पुरुष माना जाते है वह भी काळसे ही होते है ऐसेही चक्रवर्त वासुदेव बलदेवादि महान् पुरुष होते है वह सव कालसे ही होते है अगर कालके सिवाय होते ओरतों ऋतु धर्मके सिवाय गर्भ क्यु नही धारण करती है यावत कलीकालमें अवतारीक चक्रवर्त वासुदेवादि क्युं नही होते है वास्ते सर्व पदार्थ कालसे ही होते है यह हमारा मत्त सुन्दर है, सर्व जन समुहको मनन करने योग्य है ।
(२) स्वभावबादी - स्वभावबादीयोंका मत्त है कि काल कि अपेक्षाकी क्या जरूरत है । जगतमें जितने पदार्थ है वह सब स्वभावसे उत्पन्न होते है और स्वभावसे ही विनास होते हैं। जेसे युवक स्त्रि अपने पतिके साथ भोग विलास करती है ऋतुधर्म भी होती है तद्यपी कीतनीक बद्य अर्थात् गर्भ धारण नही करती है वास्ते कालकि आवश्यक्ता नही है परन्तु स्वभाव ही प्रधान है। देखिये स्त्रीयोंके दाडीमुच्छके केस न होना हताली में रोम न होना निंबके वृक्ष आम्रका फल न लगना, मयूरकि पांखोंके चित्र, सायंकालमें वादलोंका पंच रंग होना धनुषका खंचना बंबुल के कंटे तीक्ष्ण होना मृगके नयन रमणीय होना अग्निकि ज्वालाका उर्ध्व गमन पर्वतोंका स्थिर रहेना वायुका चलना जलकि तरंगो,