________________
(४०) भानुयोग तथा दानशील तप भावना रूपी च्यार बनो करके शासनमे बहुश्रुतिनी महाराज शोभनिय होते है।
(१६) जेसे सामान समुद्रोंके अन्दर महान् पदसे भूषीत अनेक रत्नोंका खजाना और अथाग जलसे भरा हुवा सयंभूरमण समुद्र अनेक कमलोंसे शोभायमान है, इसी माफीक अन्य साधुवोंके अन्दर महान् पद भोक्ता और ज्ञानादि अनेक रत्नोंका खजाना रूप तथा श्रुतज्ञानरूपी अथाग और निमल जलसे परिपूर्ण तथा चतुर्विध संघ और देवता विद्याधरों जो कि जिनवाणीरूपी सुवासीत कमलोंकि सुगन्ध ग्रहन करनेको भ्रमर सादृश एसे समुहके परिवारसे बहुश्रुतिनी महाराज प्रतिदिन अधिकाधिक शोभते हुवे शासनमें सिंह गर्जनकि माफीक अपना सद्ज्ञानद्वारे चादीयोंका पराजय करते शासनकि प्रभावनाको प्रकाश करते है ।
यह १६ औपमा, नाम मात्रसे ही बतलाई है परन्तु दीर्घदृष्टि से विचार करनेसे ज्ञात होता है कि शासनका आधार ही बहुश्रुतियों पर रहा हुवा है वास्ते बहुश्रुतियोंकी सेवा उपासना कर स्याद्वाद नय निक्षेप उत्सर्गोपवाद सामान्य विशेषादिका ज्ञान हासिल कर बहुश्रुति बननेकि कोशीष आवश्य करना चाहिये । तांके स्वपरात्माका कल्यान शीघ्र हो । शम् ।
नं. १० सूत्र श्री सूयघडायांगदिसे । ( च्यार समौसरणीयोंके ३६३ भेद ) श्री तीर्थकर भगवानने स्याद्वादरूपी शासन फरमाया है