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अन धान्य है वह अव्यावादसे शोभनिय होता है। .. — (१३) जेसे सर्व वृक्षोके अन्दर अनहित देवका भुवन कर सुदर्शन नामका वृक्ष मनोहर सुंदर आकृतिवाला देवोंको भी रमणीय है इसी माफीक अन्य मुनिमंडलमें बहुश्रुतिजी महाराज अनेक नय विक्षेप स्वादाद धर्मरूपी भुवनकर शोभनिय है।
(१४) जेसे अन्य नदीयोंके अन्दर निलवन्त पर्वतके केसरी बहसे निकलके बडहीं विस्तारसे अन्य ५३२००० नदीयोंके परिवारसे सीतानदी लवण समुद्र के अन्दर प्रवेस होती शोमनिय है। इसी माफीक अन्य मुनिमंडलमें नो राजादि उत्तम कुलसे निकले हूवे बहुत परिवारसे प्रवृत और श्रुत ज्ञानरूपी विसाल और निर्मल जलसे मोक्षरूपी महान् गंभीर तथा अक्षय स्थानमें प्रवेस होते हूवे बहुश्रुतिजी महाराज शोभनीय होते है। .. ____ (१५) जेसे अन्य पर्वतोंके अन्दर उर्ध्व गमनापेक्षा केलासगिरि (मेरू) पर्वत जो कि सनीवनि आकाशगामनि चित्रावेली विषहरणी शस्त्रनिवारणी रोगनासक रससादक बसीकरण रोहमी आदि औषधियों संयुक्त तथा अनेक उदंड वायुके चलनेपर भी क्षोभ न पानेवाला और देवतोके मानन्दका सुन्दर मन्दिर चार प्रभावशाली वनोंकर सुमेरू मिरि शोमनिय है। इसी माफिक मुनिमंडलमें। अमोसही नलोसही विप्पोसही सव्वासही आदि अनेक लब्धियोंरूपी औषथियोंसे अलंकृत तथा हजारों बादीयोंका वेग चलनेपर तथा अनेक परिसहसे क्षोभ नहीं पामता हूवा चतुर्विध संघको आनन्दका स्थान और द्रव्यानुयोग गीणतानुयोग चरणाणुयोग धर्मक