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________________ ( ३६ ) (३) जेसे दृढ प्राक्रमवान अप्तवार आकर्णी जातके अश्वपरारूढ हो, शास्त्रसंयुक्त और वात्रिके नादसे शत्रुवोंका पराजय करते हुवे शोमें, इसी माफीक मुनिमंडल में सिद्धान्तरूपी अश्वपरारूढ हो सुत्रों का पठन पाठनरूपी वार्जित्रके नादसे कर्मरूपी शत्रुवों तथा अन्यमतियों रूपी वादीयोंका पराजय करता शासन की प्रभावना करते हुवे शोभे । (४) जेसे अनेक हस्ताणियोंके वृन्दमें युवक हस्ती अपने व्यपरिमत प्राक्रमसे अन्य हस्तीयोंकों पराजय करता हूवा शोभे इसी माफीक बहुश्रुति महाराजरूपी गन्ध हस्ती प्यार प्रकारकि बुद्धि और तर्क वितर्क समाधानरूपी परिवार से स्वाद्वादरूपी प्राक्रमसे अन्ववादीयोंरूपी हस्तीयोंका पराजय करता हुवा शासनमें शोभनिक होता है । (५) जेसे तीक्षण श्रृंग करके मरूस्थल देशका वृक्षम अन्य देशोंका वृक्षभोंमें प्राक्रमी और शोभनिय होता है इसी माफोक मुनिमंडल में स्वमत्त परमत्तके ज्ञातारूप शृंग तथा उत्सर्गोपवादरूपी तीक्षण शृंगोंकर अन्य नास्तिकादि बादीयोंका पराजय करते हूवे चतुर्विध संघका समुहके अन्दर शोभनिक होते है । (६) जैसे तीक्षण दाढोकरके सिंह महान वनके अंदर अन्य पशुवोंमें स्वप्राक्रमसे सर्व वनमें गर्जना करता हुवा कीसी से भी पराभव नहीं होते है । इसी भाफीक मुनिमंडल में बहुश्रुतिजी महाराज स्वज्ञान प्राक्रम और नैगमादि सातनयरूपी तीक्षण दाडोसे सत्य तत्व परूपणारूपी गर्जना करते हुवे अन्य वादियोंरूपी प्रशुवको पराजय करते हुवे शासन में अधिक शोभायमान होते है ।
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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