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(३५) जैनशासनमें बहुश्रुतियोंका बड़ा भारी महात्व बतलाया है कारण शासनका आधार ही बहुश्रुतियोंपर है बहुश्रुति स्वपर आत्माका कल्याणमें एक असाधारण कारणभूत है वास्ते ही शास्त्रकारोंने बहुश्रुतियोंको १६ औपमासे अलंकृत किये है वह यहाँपर लिखी जाती है।
___ बहुश्रुतिनी महाराजको १६ औपमा ।
(१) जेसे दुद्ध स्वयं उज्वल और निर्मल होता है तद्यपि दक्षिणावृतन संख्खके अन्दर रहने से अधिक शोभायमान होता है
और भी दुद्ध संख्खमें रहनेसे खाटा न पडे, मलीन न होवे, विनास भी न होवे इसी माफीक तीर्थकरोंके फरमाये हुवे श्रुतज्ञान म्वयं निर्मठ है तद्यपि बहुश्रुति रूप संख्खमें रेहनेसे अधिक शोभनिय होता है कारण बहुश्रुति आगमोंकि रहस्यके ज्ञाता होनेसे स्याहाद उत्सर्गोपवाद अनेक नय प्रमाणसे उन्ही ज्ञानके संरक्षण करते हुवे जैन शासनकि प्रभावनाके साथ भव्य जीवोंका उद्धार करें, वास्ते ज्ञान बहुश्रुतियोंकि नेश्राय रहा हुवा ही शोभनिय होता है।
(२) जेसे सर्व जातिके अोंके अन्दर कम्बोज देशके आकर्णी जातीके अश्व अच्छे सुन्दर होते है वह राजा (असवार) कि मरनी माफीक वैगसे चलते हुवे अनेक उपसर्गोसे त्रास नही पांमनेवाले शोभाको प्राप्ती करता है । इसी माफीक बहुश्रुतिनी महाराज अन्य मुनिवरों में अग्रेश्वर जिन प्रणीत आगमोंसे सुन्दर भतिश्यवान जिनाज्ञानुसार वस्तु धर्मप्रकाश करनेमें और पाखंडियों के उपसर्गको सहन करने सत्वधारी शोभायमान होते है।