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________________ (७) जेसे सङ्क गदा चक्र और सग्रामीक स्थ करके अनेक रामा महाराजावोंका मानको मर्दन करता हूवा वासुदेव शोभता है। इसी माफीक मुनिमंडलमें बहुश्रुतिनी महाराजा सिद्धोतरूपी रथ ज्ञान गदा दर्शनचक्र संयमरूप सङ्क और निज मतिरूपी भुनावोंसे वादीयोंपर विजय करता हुवा शासनमें शोभनिय होता है । (८) जेसे अश्व गन रथ चौरासी चौरासी लक्ष तथा छीनवक्रोड पैदल नवनिधान चौदारत्न करके, भुमंडलके च्यारो दिशाके वादीयोंपर दिग्विजय कर लेता है । इसी माफीक मुनिमंडलमें बहुश्रुतिजी महारान द्रव्यानुयोग गणतानुयोग चरणाणुयोग धर्मकथानुयोग रूपी शैन्य चवदा पूर्वरूपी चवदारत्न नव तत्त्व रूपी नवनिधान पंच महाव्रतरूपी एरावण नामका गन्ध हस्तीके शुक्ल ध्यानरूपी दन्ताशुल, शुक्ललेश्या रूपी अंबाडी, स्याद्वादरूपी होने तर्फ गंटाके नाद तथा अठावीस लंब्धि रूपी महान् ऋद्धिके परिवारसे जिनेन्द्राज्ञा रूपी सुदर्शन चक्र और नववाड विशुद्ध ब्रह्मचार्य रूपी स्नहा बक्तरसे सज्ज होके चार गसिके भव भ्रमन रूप जो शत्रु तथा दुनियोंकों उलटे रहस्ते लेजाने वाले पाखंडी रूपी बादीयोंका पराजयके साथ शासनकि प्रभावना करते हुवे बहुश्रुतिमी महाराज शोभनीय होते है। (९) जेसे सहस्र चक्षुवाला मौधर्मेन्द्र सामानीकदेव, परषदा- १ सौधर्मेन्द्र पूर्व क्रतीक सेठके भवमें १००८ गुमास्तोंके सायें १ दीक्षा ली थी जिस्मे ५०० मुनी इन्द्रके सामानीक देव पणे उत्पम हवे थे वह सभाके अन्दर साथ रहने से उन्हों के १००० चक्षु इन्द्र ही के माने जानेसे सहस नेत्रोंवाला कहा है।
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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