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नम्बर ९। श्री उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन ११ ।
( बहुश्रुति) (१) सद् विद्या करके रहीत हो एसे मनुप्योकों। (२) कुविद्यावोंको धारण करनेवाला ।" (३) विद्या पढ़के अभिमान करनेवाला हो।" (४) पांचों इन्द्रियोंकि विषयमें ग्रीद्धी हो ।" (५) वार वर असंबन्ध भाषाका बोलनेवाला हो।" इन्हों पांचोंको अविनय और अबहुश्रुति केहते हैं।" (१) स्थंभ कि माफीक अभिमान करनेवाला हो । (२) अग्निके माफीक क्रोध करने वाला हों। (३) येहदीकी माफीक प्रमाद करनेवाला हो । (४) ज- मसेहि रोगी हो तथा प्रतिदिन रोग वाला हो । (१) दिन रात्री आलसके घरमें निवास करता हो । इन्हीं पांचोंकों शिक्षा देना व्यर्थ है अर्थात शिक्षाके अयोग है। (१) जिन्होंका ज्यादा हसा ठठा मोस्करीका स्वभाव न हो (२) पांचो इन्द्रियोंकों अपनेकबजे रखनेवाला हो। (३) गंभीर-धीर्यवान् किंसीका मर्म प्रकाश न करे। (१) चरित्रके सर्व विराधीक न हो। (५) चरित्रके देश विराधी कभी न हो। (६) इन्द्रियोंकि लोलपताके वसीभूत न हो। (७अक्रोधी-क्रोध न करे अमर हवा भी होतो उपशमा दे।