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________________ (१) पहिले अपनी शक्तिका विचार करे, और देखे कि में इस वादीका पराजय कर सकता हूं या नहीं ? मुझमें कितना ज्ञान है और वादीमें कितना है ? इसका विचार करे. (२) यह क्षेत्र किस पक्षका है. नगरका राजा व प्रजा सुशील है या दुःशील है. और जैनधर्मका रागी है वा द्वेषी है ? इन सब बातोंका विचार करे. (३) स्व और परका विचार करे. इस विषयमें शास्त्रार्थ करता हुं परन्तु इसका फल (नतीजा) पीछे क्या होगा? इस क्षेत्रमें स्वपक्षके पुरुष कम है, और परपक्षवाले ज्यादे है, वे भी जैनपर अच्छा भाव रखते है, या नहीं? अगर राजा और प्रजा दुर्लभबोधि होगा तो शास्त्रार्थ करनेसे जैनोंका इस क्षेत्रमें आना जाना कठिन हो जायगा. ऐसी दशामें तीर्थादिकी रक्षा कौन करेगा ? इत्यादि बातोंका विचार करे. (४) बादी किस विषयमें शास्त्रार्थ करना चाहता है. और उस विषयका ज्ञान अपनेमें कितना है ? इसको विचार कर शास्त्रार्थ करे. ऐसे विचार पूर्वक शास्त्रार्थ कर वादीका पराजय करना. (८) संग्रह संपदाके चार भेद. यथा (१) क्षेत्र संग्रह-गच्छके साधु ग्लान, वृद्ध, रोगी आदिके लीये क्षेत्रका संग्रह याने अमुक साधु उस क्षेत्रमें रहेगा, तो वह अपनी संयम यात्राको अच्छी तरहसे निर्वहा सकेगा और श्रोतागणकोभी लाभ मिलेगा. (२) शीतोष्ण या वर्षा
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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