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क्रमशः दे, बीचमें तोडे नहीं, जिससे संबंध बना रहे. ( ४ ) जितनी वाचना दे, उसको अच्छी शैतिसे भिन्न २ कर समजावे. उत्सर्ग, अपवादका रहस्य अच्छी तरहसे बतावे.
(६) मति संपदाका चार भेद यथा
(१) उग्ग ( शब्द सुने), (२) इहा (विचारे), (३) पाय ( निश्चय करे ), (४) धारणा ( धारणा रखे ).
( १ ) उग्ग - किसी पुरुषने या कर आचार्यके पास एक बात कही, उसको आचार्य शीघ्र ग्रहण करे. बहुत प्रकार से ग्रहण करे, निश्चय ग्रहण करे, अनिश्रय ( दूसरोंकी सहाय बिना) पहिले कभी न देखी, न सुनी हो, भैसी बातको ग्रहन करे. इसी माफिक शास्त्रादि सब विषय समझ लेना. ( २ ) इहा - इसी मा फिक सब विचारणा करे. (३) अपाय - इसी माफिक वस्तुका निश्चय करे. ( ४ ) जिस वस्तुको एकवार देखी या सुनी हो, उसको शीघ्र धारे, बहुत विधि से धारे, चिरकाल पर्यंत धारे, कठिनता से धरने योग्य हो उसको धारे, दूसरोंकी सहाय बिना धारे.
(७) प्रयोग संपदाके चार भेद. यथाair वादके साथ शास्त्रार्थ करना हो, तो इस रीतिसे करे -
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