________________
(३) शरीर संपदाके चार भेद. यथा- ..
(१) प्रमाणोपेत (उंचा पूरा) शरीर हो. (२) दृढ संहननवाला हो. (३) अलज्झत शरीर हो, परिपूर्ण इंद्रियांयुक्त हो. (४) हस्तादि अंगोपांग सौम्य शोभनीक हो, और जिनका दर्शन दूसरोंको प्रियकारी हो. हस्त, पादादिमे अच्छी रेखा वा उचित स्थानपर तील, मसा लसण निगेरे हो.. .
(४) वचन संपदाके चार भेद. यथा
(१) आदेय वचन-जो वचन आचार्य निकाले, वह निष्फल न जाय. सर्वलोक मान्य करे. इसलिये पहिलेहीसे विचार पूर्वक बोले. (२) मधुर वचन, कोमळ, सुस्वर, गंभीर
और श्रोतारंजन वचन बोले. (३) अनिश्रित-राग, द्वेषसे रहित द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव देखकर बोले. (४) स्पष्ट वचन-सब लोक समझ सकै वैसा वचन बोले परन्तु अप्रतीतकारी वचन न बोले.
(५) वाचना संपदाके चार भेद. यथा(१) प्रमाणिक शिष्यको वाचना देनेकी आज्ञा दे [वाचना उपाध्याय देते हैं] यथायोग. (२) पहिले दी हुइ वाचना अच्छी तरहसे प्रणमावे. उपराउपरी वाचना न दे. क्योंकि ज्यादा देनेसे धारणा अच्छी तरह नहीं हो सक्ती. (३) वाचना लेनेवाले शिष्यका उत्साह बढावे, और वाचना