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संपदा, (४)वचन संपदा, (५) वाचना संपदा, (६) मति संपदा, (७)प्रयोग संपदा, (८) संग्रह संपदा-इति.
(१) आचार संपदा के चार भेद. (१) पंच महाव्रत, पंच समिति, तीन गुप्ति, सत्तर प्रकारके संयम, दश प्रकारके यतिधर्मादिसे अखंडित आचारवन्त हो, सारणा, धारणा, वारणा, चोयणा, प्रतिचोयणादिसे संघको अच्छे प्राचारमें प्रवावे. (२) आठ प्रकारके मद और तीन गारवसे रहित-बहुत लोकोंके माननेसे अहंकार न करे और क्रोधादिसे अग्रहित हो. (३) अप्रतिबंध-द्रव्यसे भंडोमत्तोपगरण वस्त्र-पात्रादि, क्षेत्रसे ग्राम, नगर उपाश्रयादि, कालसे शीतोष्णादि कालमे नियमसर जगह रहना और भावसे राग, द्वेष ( एकपर राग, दूसरेपर द्वेष करना) इन चार प्रकारके प्रति बंध रहित हो. (४) चंचलता-चपलता रहित, इंद्रियोंको दमन करे, हमेशां त्यागवृत्ति रख्खे, और बडे आचारवंत हो.
(२) सूत्र संपदाका चार भेद. यथा
(१) बहुश्रुत हो (क्रमोत्क्रम गुरुगमसे वांचना ली हो) (२) स्वसमय, परसमयका जाननेवाला हो. याने जिस कालमें जितना सूत्र है, उनका पारगामी हो. और वादी प्रतिवादी
को उत्तर देने समर्थ हो. (३) जितना आगम पढे या सुने . . उसको निश्चल धारण कर रक्खे, अपने नाम माफिक कभी
न भूले. (४) उदात्त, अनुदात्त, घोष-उच्चारण शुद्ध स्पष्ट हो.