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________________ कालके लिये पाट-पाटलादिका संग्रह करे, क्योंकि आचार्य गच्छके मालिक है. इस लिये उनके दर्शनार्थी साधु बहुतसे आते हैं, उन सबकी यथायोग्य भक्ति करना आचार्यका काम है. और पाट-पाटलाके लीये ध्यान रखे कि इस श्रावकके वहां ज्यादाभी मिल सक्ता है. जिससे काम पड़े जब ज्यादा फिरनेकी तकलीफ न पडे. (३) ज्ञानका नया अभ्यास करते रहे. अनेक प्रकारके विद्यार्थीओंका संग्रह करे. और शासनमें काम पडनेपर उपयोगमें लाये. क्योंकि शासनका आधार आचार्यपर है. (४) शिष्य-जोकि शासनको शोभानेवाले हो, और देशों देशमें विहार करके जैनधर्मकी वृद्धि करनेवाले असे सुशिष्योंकी संपदाको संग्रह करे. इति आचार्यकी आठ संपदा समाप्त. आचार्यने सुविनीत शिष्यको चार प्रकारके विनयमें प्रवृत्ति करानी चाहिये. यथा-१) आचार विनय, (२) सूत्रविनय, (३) विक्षेपण विनय, (४) दोष निग्घायणा विनय. (१) आचार विनयके ४ भेद. (१) संयम सामाचारीमें आप वर्ते, दूसरेको वर्तावे, और वर्ततेको उत्तेजन दे. (२) तपस्या आप करे, दूसरोंसे करवावे ओर तपस्या करनेवालोंको उत्तेजन दे. (३) गणगच्छका कार्य आप करे, दूसरोंसे करवावे और उत्तेजन दे.
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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