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( ३३ ) जिस ग्राम यावत् राजधानी में रहे हुवे साधुसाध्वीयोंको पांच गाउ तक जाना कल्पै कारण- दोय कोश तक तो गोचरी जाना आना हो सकता है, और दोय कोश जाने के बाद आधा कोश वहांसे स्थंडिल ( बडी नीति) जा सकता है. एवं अढाइ कोश पश्चिमका मिलाके पांच कोश जाना आना कल्पै | अधिक जाना हो तो, शीतोष्य कालमें अपने भद्रोपकरण लेके विहार कर सकते है । इति ॥
इतिश्री बृहत्कल्पसूत्र - तीसरा उद्देशाका संक्षिप्त सार ।
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चौथा उद्देशा.
( १ ) साधु-साध्वीयों जो स्वधर्मीकी चौरी' करे, परधर्मा चौरी करे, साधु आपसमें मारपीट करे - इस तीनो का - रणों से आठवां प्रायश्चित्त अर्थात् पुन: दीक्षा लेनका प्रायवित्त होता है.
( २ ) हस्तकर्म करे, मैथुन सेवे रात्रिभोजन करे, इस तीन कारणों से नौवां प्रायश्चित, अर्थात् गृहस्थलिंग करवाके पुनः दीक्षा दी जावे.
१ चौरी १ सचित्त - शिष्य, २ अचित्त वस्त्रपात्रादि द्रव्य, . ३ मिश्र - उपधि सहित शिष्य अर्थात् बिगर आशा कोइ भी वस्तु लेना, उसको चौरी कहते है.
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