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________________ ३४ (३) दुष्टता-जिसका दोय भेद. (१) कषाय दुष्टता जैसा कि एक साधुने मृत-गुरुका दांत पत्थर से तोडा. (२) विषय दुष्टता-जैसा कि राजाकि राणी और साध्वीसे विषय सेवन करे. प्रमाद-जो पांचवी स्त्याना निद्रावाला, वह निद्रामें संग्रामादिभी कर लेता है. अन्योन्य-साधु-साधुके साथ अकृत्य कार्य करे. इस तीनों कारणों से दशवां प्रायश्चित्त होता है, अर्थात् गृहस्थलिंग करवाके संघको ज्ञात होनेके लीये दुकानोंसे कोडी प्रमुख मंगवाना, इत्यादि. भावार्थमोहनीय कर्म बडाही जबरजस्त है. बडे बडे महात्मावोंको श्रेणिसे गिरा देता है. गिरनेपरभी अपनी दशाको संभालके प्रश्चात्ताप पूर्वक आलोचना करनेसे शुद्ध हो सकता है. जो प्रायश्चित्त जनसमूहकी प्रसिद्धिमें सेवन कीया हो तो उन्होके विश्वास के लीये जनसमूहके सामने हि प्रायश्चित देना शास्त्रकारोंने फरमाया है. इस समय नौवां दशवां प्रायश्चित्त विच्छेद है. आठवां प्रायश्चित्त देनेकी परंपरा अबी चलती है. . (४) नपुंसक हो, स्त्री देखनेपर अपने वीर्यको रखनेमें असमर्थ हो, स्त्रीयोंके कामक्रीडाके शब्द श्रवण करते ही कामातुर हो जाता हो, इस तीन जनोंको दीक्षा न देनी चाहिये. अगर अज्ञातपनेसे देदी हो, पीछेसे ज्ञात हुवा हो, तो उसे मुंडन न करना चाहिये. अज्ञातपनेसे मुंडन कीया हो तो शिष्यशिक्षा न देना चाहिये. एसा हो गया हो तो उत्थापन अर्थात् बडी दीक्षा न देनी चाहिये. असाभी हो गया हो, तो
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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