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... (१४ ) जो कोइ शय्यातरके सजनने अपने वहांसे सुखडी प्रमुख शय्यातरके वहां भेजी है, उसको शय्यातरने अपनी करके रख ली हो, तो साधु साध्वीयोंको लेना नहीं कन्पै ।
(१५) अगर शय्यातरने नहीं रखी हो तो कल्पै ।
(१६) शय्यातरने अपने वहांसे सुजनके (स्वजनके) वहां भेजी हो वह नहीं रखी हो तो साधुको लेना नहीं कल्पै ।
( १७ ) अगर रख ली हो तो साधुको कल्पै ।
( १८ ) शय्यातरके मिजबान कलाचार्य विगेरे आये हो उसको रसोइ बनवानेको शय्यातरने सामान दीया है, और कहा कि-'आप रसोइ बनाओ, आपको जरूरत हो वह आप काममें लेना, शेष बचा हुवा भोजन हमारे सुप्रत कर देना। उस भोजनसे अगर वो शय्यातर देवे, तो साधुओंको लेना नहीं कल्पै । -
(१९) मिजवान देवे तो नहीं कल्पै ।
(२०) सामान देते वखत कहा होवे कि 'हमें तो आपको दे दिया है अब बचे उस भोजनको आपकी इच्छानुनुसार काममें लेना' । उस आहारसे शय्यातर देता हो तो साधुको नहीं कल्पै । कारन-दुसराका श्राहार भी शय्यातरके हाथसे साधु नहीं ले सकते है।
(२१) परन्तु शय्यातरके सिवा कोई देता हो तो साधु