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ओंको कल्प ग्रहन करना। शय्यातरका इतना परेज रखनेका कारन-अगर जिस मकानमें साधु ठहरे उसके घरका आहार लेने में प्रथम तो आधाकर्मी आदि दोष लगनेका संभव है, दुसरा मकान मिलना दुर्लभ होगा इत्यादि।
(२२ ) साधु साध्वीयोंको पांच प्रकारके वस्त्र ग्रहन करना कल्पै (१) कपासका, (२) उनका, (३) अलसीकी छालका, (४) सणका, (५) अकैतूलका ।
( २३ ) साधु साध्वीयोंको पांच प्रकारके रजोहरन रखना कल्पै (१) उनका, (२) ओटीजटका, (३) सणका, (४) मुंजका, (५) तृणोंका। । इति श्री बृहत्कल्पसूत्रमें दूसरा उद्देशाका संक्षिप्त सार ।
तीसरा उद्देशा.
(१) साधुओंको न कल्पै कि वो साध्वीयोंके मकान पर जाके उभा रहै, बैठे, सोवे, निद्रा लेवे, विशेष प्रचला करे, अशन, पान, खादिम, स्वादिम करे, लघुनीति या बडी नीति करे, परठे, स्वाध्याय करे, ध्यान या कायोत्सर्ग करे, आसन लगावे, धर्मचिन्तन करे-इत्यादि कोइ भी कार्य वहां पर नहीं करना चाहिये ।