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चाहिये । कारन-गृहस्थोंकी बहिन, बेटी, बहुवोंका हरदम वहां रहेना होता है । वह किस अवस्थामें बैठ रहेती है, और महिला परिचय होता है।
(३६) साध्वीयोंको ऐसा मकान हो, तो भी ठहरना कल्यै ।
(३७) दो साधुवोंको आपसमें कषाय ( क्रोधादि ) हो गया होवे, तो प्रथम लघु ( शिष्यादि ) को वृद्ध (गुर्वादि ) के पास जाके अपने अपराधकी क्षमा याचनी चाहिये । अगर लघु शिष्य न जावे तो वृद्ध गुर्वादिको जाके क्षमा देनी लेनी चाहिये । वृद्ध जावे उस समय लघु साधु उस वृद्ध महात्माका आदर सत्कार करे, चाहे न भी करे; उठके खडा होवे चाहे न भी होवः वन्दन नमस्कार करे चाहे न भी करे, साथमें भोजन करे, चाहे न भी करे, साथमें रहे, चाहे न भी रहे। तोभी वृद्धोंको जाके अपने निर्मल अन्तःकरणसे खमावना चाहिये।
प्रश्न-स्थान स्थान वृद्धोंका विनय करना शास्त्रकारोंने बतलाया है, तो यहाँपर वृद्ध मुनि सामने जाके समावे इसका क्या कारन है ?
उत्तर-संयमकासार यह है कि क्रोधादिको उपशमाना, यहांपर बडे छोटेका कारन नहीं है।जो उपशमावेगा-खमतखामणा करेगा, उसकी आराधना होगी; और जो वैर विरोध रक्खेगा अर्थात् नहीं खमावेगा, उसकी आराधना नहीं होगी । वास्ते सर्व जीवोंसे मैत्रीभाव रखना यही संयमका सार है ।