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________________ (३८) साधु साध्वीयोंको चतुर्मासमें विहार करना नहीं कल्पे। कारन-चातुर्मासमें जीवादिककी उत्पत्ति अधिक होती है। (३६) शीतोष्णकालमें आठ मास विहार करना कल्पै । (४०) साधु साध्वीयोंको जो दोय राजावोंका विरूद्ध पक्ष चलता हो, अर्थात् दोय राजाका आपसमें युद्ध होता हो, या युद्ध की तैयारी होती हो, ऐसे क्षेत्र में बार बार गमनागमन करना नहीं कल्पे । कारन-एक पक्षवालोंको शंका होवे कि यह साधु बार बार आते जाते है, तो क्या हमारे यहांके समाचार परपक्षवालोंको कहते होंगे? इत्यादि । अगर कोई साधु साध्वी दोय राजावोंके विरुद्ध होनेपर बार बार गमनागमन करेगा, उसीको तीर्थंकरोंकी और उस राजावोंकी आज्ञाका भंग करनेका पाप लगेगा, जिससे गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित आवेगा। (४१) साधु गृहस्थोंके वहां गोचरी जाते है । अगर वहां कोइ गृहस्थ वस्त्र, पात्र, कंबल रजोहरनकी आमंत्रणा करे, तो कहना कि यह वस्तु हम लेते है, परन्तु हमारे प्राचार्यादि वृद्ध मुनियों के पास ले जाते हैं। अगर खप होगा तो रख लेगें खप न होगा तोतुमको वापिस ला देंगे। कारन-आहारादि वस्तु लेने के बाद वापिस नहीं दी जाती है, परन्तु वस्त्र पात्रादि वस्तु उस रोजके लिये करार कर लाया हो, तो खप न होनेपर वापिस भी दे सकते है । वस्त्रादि लाके आचा
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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