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इच्छा स्वछंदे पासत्थपणे विहार करती हुइ बहुत वर्षों तक तपचर्या कर अन्तमे आदा मासका अनसनकर पापस्थान अनाआलोचीत कालकर सौधर्म देवलोक में श्रीवतंस वैमानमें श्री देवीपणे उत्पन्न हुइ है वहां च्यार पल्योपमका आयुष्य पुरण कर महावि देह क्षेत्रमें उत्तम जाति कुलमें उत्पन्न होगा. केवली परूपित धर्म स्वीकार कर दीक्षा ग्रहन करेगी शुद्ध चारित्र पालके केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष जावेगी इति प्रथमाध्ययनं समाप्तम् ।
एवं हूरीदेवी, धृतिदेवी, कीर्तिदेवी, बुद्धिदेवी, लक्ष्मिदेवी, एलादेवी, सुरादेवी, रसादेवी, गन्धादेवी. यह दशों देवीयों भगवानकों वन्दन करनेकों आइ. बतीस प्रकारका नाटक किया. गौतमस्वामि इन्होंके पूर्वभवकि पुच्छा करी भगवानने उत्तर फरमाया दशों पूर्व भवमें गाथापतियों के पुत्रीयों थी जेसेकि भूता. दशों पार्श्वनाथ प्रभुके पास दिक्षा ग्रहन कर शरीरकि सुश्रुषा कर विराधि हो सौधर्म देवलोक गइ वहांसे चवके महाविदह क्षेत्र आराधिपद ग्रहन कर केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष जावेगी । इति दशाध्ययनं ।
॥ इति पुप्फचूलिया सूत्र संक्षिप्त सार समाप्तम् ||