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________________ हान् दुःख है जैसे किसी गाथापतिके गृह जलता हों-उसके अन्दरसे असार वस्तु छोडके सार वस्तु निकाल लेते हैं वह सारवस्तु गृहस्थोंकों सुखमे सहायता भूत हो जाती है एसे मैं भी असार संसार पदार्थीको छोड संयम सार ग्रहन करती हु इत्यादि वीनती करी। भगवानने उस भूताको च्यार महाव्रतरूप दीक्षा देके पुप्फचूला नामकि साध्विजीकों सुप्रत करदि। भूतासाध्वि दीक्षा लेनेके बाद फासुक पाणी लाके कबी हाथ धोवे, कबी पग धोवे, कबी खांख धोवे, कबी स्तन धोवे, कबी मुख नाक आंखे शिर आदि धोना तथा जहांपर बेठे उठे वहांपर प्रथम पाणीके छडकाव करना इत्यादि शरीरकि सुश्रुषा करना प्रारंभ कर दीया। पुप्फचूलासाध्विजी भूतासाध्विसे कहाकि हे आर्य! अपने श्रमणी निग्रन्थी है अपनेकों शरीरकि सुश्रुषा करना नही कल्पता है तथापि तुमने यह क्या ढंग मंड रखा है कि कबी हाथ धोती है कबी पग धोती है यावत् शिर धोती है हे साध्वी ! इस अकृत्य कार्य कि आलोचन करो ओर आइंदासे एसे कार्यका परित्याग कर एसा गुरुणीजीके कथन को आदर न करती हुइ भूताने अपना अकृत्य कार्यको चालु ही रखा । इसपर बहुतसी साध्वियों उस भूताको रोकटोक करने लगी हे साध्वि! तुं बडेही आडम्बरसे दीक्षा ग्रहन करीथी तो अब इस तुच्छ सुखोंके लिये भगवान आज्ञाकि विराधि हो अपने मोला हुवा चारित्र चुडामणिकों क्यो खो रही है ? गुरुणिजी तथा अन्य साध्वियोंकि हितशिक्षाको नही मानती सोमाकि माफीक दुसरा उपासराके अन्दर निवासकर स्व
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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