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________________ १४४ गौतमस्वामिने प्रश्न किया कि हे भगवान! चन्द्रदेवको स्थिति कितनी है। हे गौतम! एक पल्योपम और एकलक्ष वर्षकि स्थिति चन्द्रकी है। पुनः प्रश्न किया कि हे भगवान! यह चन्द्रदेव ज्योतिषीयों का इन्द्र यहांसे भव स्थिति आयुष्य क्षय होने पर कहां जावेगा? हे गौतम ! यहांसे आयुष्य क्षय कर चन्द्रदेव महाविदेह क्षेत्रमें उत्तम जाति-कुलके अन्दर जन्म धारण करेगा। भोगविलाससे विरक्त हो केवली प्ररूपीत धर्म श्रण कर संसार त्याग कर दीक्षा ग्रहण करेगा । च्यार घनघाती कर्म क्षय कर केवलज्ञान प्राप्त कर सिधा ही मोक्ष जावेगा। इति प्रथम अध्ययन समाप्तम् । (२) हुसरा अध्ययनमें, ज्योतिषीयोंका इन्द्र सूर्यका अधिकार है चन्द्रकि माफीक सूर्यभि भगवानकों वन्दन करनेको आयाथा बत्तीस प्रकारका नाटक कियाथा, गौतमस्वामिको पृच्छा भगवानका उत्तर पूर्ववत् परन्तु सूर्य पूर्वभवमें सावत्थी नगरीका सुप्रतिष्ट नामका गाथापति था । पार्श्वप्रभुके पास दीक्षा, इग्यारा अंगका ज्ञान, बहुत वर्ष दीक्षा पाली, अन्तिम आधा मासका अनसन, विराधि भावसे कालकर सूर्य हूवा है एक पल्योपम एकहजार वर्षकि स्थिति. वहांसे चवके महाविदह क्षेत्रमें चन्द्रकि माफीक केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष जावेगा इति द्वितीयाध्ययन समाप्तम् ॥ (३) तीसरा अध्ययन । भगवान वीर प्रभु राजगृह नगर गुणशीला चैत्यके अन्दर पधारे राजादि वन्दनकों गया। चन्द्रकि माफीक महाशुक्र नामका गृह देवता भगवानकों वन्दन करने को आया यावत् बत्रीस प्रकारका नाटक कर वापिस चला गया।
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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