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________________ १४३ शत्रु नामका राजा राज करता था उसी नगरीके अन्दर आगतिया नामका एक गाथापति वसता था वह बडा ही धनाक्ष्य और नगरीमें एक प्रतिष्ठित था " जेसे आनन्द गाथापति" उस समय तेवीसमें तीर्थंकर पार्श्वनाथ प्रभु विहार करते सावत्थी नगरीके कोष्टवनोद्यानमें पधारे. राजादि सब लोग भगवानको वन्दन करनेको गये. इधर आगतिया गाथापति इस वातको श्रवण कर वह भी भगवानको वन्दन करनेकों गया। भगवानने धर्मदेशना फरमाइ संसारका असार पना और चारित्रका महत्व बतलाया. आगतिया गाथापति धर्म सुनके संसारको अ. सार जाण अपने जेष्टपुत्रको गृहकार्यमें स्थापन कर आप गंगदत्त कि माफीक वडे ही महोत्सवके साथ भगवानके पास च्यार महाव्रत रूप दीक्षा धारण करी। आगतिया मुनि पांचसमिति समता, तीन गुप्तीगुप्ता यावत् ब्रह्मगुप्ति ब्रह्मचर्य व्रत पालन करता हुवा, तथा रूपके स्थवीरोंके पास सामायिकादि इग्यारा अंगका ज्ञानाभ्यास किया । बादमें बहुतसी तपश्चर्या करते हुवे बहुत वर्षों तक चारित्रपर्याय पालन करके अन्तमें पन्दरा दिनोंका अनसन किया, परन्तु जो उत्तर गुणमें दोष' लगा था उसकी आलोचना नहीं करी वास्ते, विराधिक अवस्थामें काल कर ज्योतिषियोंके इन्द्र ज्योतिषीयोंके राजा यह चन्द्रमा हुवा है पूर्वभवमें चारित्र ग्रहण करनेका यह फल हुवा कि देवता सम्बन्धी रुद्धि ज्योती कान्ती यावत् देव भव उदय हुवा है परन्तु साथमे विरोधि होनेसे ज्योतिषी होना पडा है कारण आराधि साधुकि गति वैमानिक देवतावों कि है। १ मूल पांच महाव्रत है इसके सिवाय पिंडविशुद्धि तथा दश प्रत्याख्यान. पांच समिति. प्रतिलेखनादि यह सर्व उत्तरगुणमें है चन्द्र सूर्यने जो दोष लगाया था वह उत्तरगुणमें ही लगाया था।
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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