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________________ १४२ सामने जाके भगवानको वन्दन नमस्कार कर बोला कि हे भगवान आय वहां पर विराजमान है मैं यहां पर बेठा आपको वन्दन करता हुं. आप मेरी वन्दन स्वीकृत करावे । यहां पर सब अधिकार सूर्याभ देवताकी माफीक कहना। कारण देव आगमनके अधिकारमें सविस्तर अधिकार रायप्पसेनी सूत्र सूर्याभाधिकारमें ही कीया है. इतना विशेष है कि सुस्वर नामकी घंटा बजाइ थी वैक्रयसे एक हजार योजन लंबा चौडा साडा बासठ योजन उंचा वैमान बनाया था, पचवीस योजनकी उंची महंद्र ध्वजा थी. इत्यादि बहुतसे देवी देवताओंके वृन्दसे भगवानको वन्दन करनेको आया, वन्दन नमस्कार कर देशना सुनी. फिर सूर्याभकी माफीक गौतमादि मुनियोंको भक्तिपूर्वक बत्तीस प्रकारका नाटक बतलाके भगवानको वन्दन नमस्कार कर अपने स्थान जानेको गमन किया। भगवानसे गौतमस्वामिने प्रश्न किया कि हे करुणासिन्धु यह चन्द्रमा इतने रूप कहांसे बनाये. कह प्रवेश कर दीये । प्रभुने उत्तर दिया कि हे गौतम! जेसे कुडागशाल (गुप्तघर) होती है उसके अन्दर मनुष्य प्रवेश भी हो सक्ता है और निकल भी सक्ता है इसी माफीक देवोंको भी वैक्रिय लब्धि है जिससे वैक्रिय शरीरसे अनेक रूप बनाय भि सके और पीछा प्रवेश भी कर सके। पुनः गौतमस्वामिने प्रश्न किया कि हे दयालु ! इस चन्द्रने पूर्वभवमें इतना क्या पुन्य किया था कि जिसके जरिये यह देवरुद्धि प्राप्त हुइ है ? ... भगवानने उत्तर दिया कि हे गौतम ! सुन । इस जम्बुद्विपका भरतक्षेत्रके अन्दर सावत्थी नामकी नगरी थी वहां पर जय
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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