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________________ गयाथा कि कोणकको इन्द्र साहिता कर रहा है । तब चेटकराजा अपनि शेष रही हुइ सैना ले वैशाला नगरी में प्रवेश कर नगरीका दरवाजा बंध कर दीया वैशाला नगरीमें श्री मुनिसुव्रत भगवानका स्थुभ था, उसके प्रभावसे कोणकराजा नगरीका भंग करनेमें असमर्थ था वास्ते नगरीके वहार निवास कर बेठा था अठारा देशके राजा अपने अपने राजधानीपर चले गयेथे। वहलकुमर रात्रीके समय सीचानकगन्ध हस्तीपर आरूढ हों, कोणकराजाकि सैना जो वैशाला नगरीके चोतर्फ घेरा दे रखाथा उसी सैनाके अन्दर आके बहुतसे सामन्तोंको मार डालता था. एसे कीतनेही दीन हो जानेसे राजा कोणकको खबर हुइ तब कोणकने आगमनके रहस्ते के अन्दर खाइ खोदाके अन्दर अग्नि प्रज्वलित कर उपर आछादीत करदीया इरादाथाकि इस रस्ते आते समय अग्निमें पडके मर जायगा, “क्या कर्मोंकि विचित्र गति है. और केसे अनर्थ कार्यकर्म कराते है" रात्री समय वहलकुमार उसी रहस्तेसे आ रहाथा परन्तु हस्तीको जातिस्मरण ज्ञान हो. नेसे अग्निके स्थानपर आके वह ठेर गया. वहलकुँमरने बहुतसे अंकुश लगाया परन्तु हस्ती एक कदमभी आगे नही धरा वहलकुँमार बोला रे हस्ती ! तेरे लिये इतना अनर्थ हुवा है अब तू मुझे इस समय क्यों उत्तर देता है यह सुनके हस्ती अपनि सुंढसे पहलढुमरको दूर रख, आप आगे चलता हुवा उस अच्छादित अग्निमे जा पडा शुभ ध्यानसे मरके देवगतिमे उत्पन्न हुवा. वहलढुमरको देवता भगवानके समौसरणमें ले गया वह वहांपर दीक्षा धारण करली अठारा सरवालाहार जिस देवताने दीया था वह वापीस ले गया। पाठकों! संसारकी वृत्तिको ध्यान देके देखिये जिसहार और
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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