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इस संग्राममें कोणककी जय ओर चेटक तथा अठारा देशोंके राजाओंका पराजय हुवा था। प्रायःसर्व जीव नरक तथा तीर्यचमें गये। दुसरे दिन भूताइन्द्र हस्ती पर, बीचमें कोणक राजा आगे शकेन्द्र पीछे चमरेन्द्र एवं तीन इन्द्र संग्राम करनेको गये. इस संग्रामका नाम रथमुशल संग्राम था दूसरे दिन ९६००००० मनुप्योंकी हत्या हुइ थी जिस्म १०००० जीव तो एक मच्छीकी कुक्षी में उत्पन्न हुवे थे. एक वर्णनागनत्वों देवलोकमे और उसका बाल मित्री मनुष्य गतिमें गया शेष जीव बहुलता नरक तीर्यच गतिमें उत्पन्न हुवा।
उत्तराध्ययन सूत्रकी टीका शेषाधिकार है तथा कीतनीक बाते. श्रेणिक चरित्रमें भी है प्रसंगोपात कुच्छ यहां लिखी जाती है।
जब कासी-कोशाल देशके अठारा राजाओंके साथ चेटक राजाका पराजय हो गया तब इन्द्र ने अपने स्थान जानेकी रजा मांगी. उस पर कोणक बोला कि में चक्रवति हुं। इन्द्रोंने कहा कि चक्रवर्ति तो बारह हो चुके है, तेरहवा चक्रवर्ति न हुवा न होगा, यह सुनके कोणक बोला कि में तेरहवा चक्रवर्ति होउंगा, वास्ते आप मुझे चौदा रत्न दीजीये दोनो इन्द्रोंने बहुतसा समझाया परन्तु कोणकने अपना हठको नहीं छोडा तब इन्द्रोंने एकेन्द्रियादि रत्नकृतव्वी बनाके दे दीया और अपना संबन्ध तोडके, इन्द्र स्वस्थान गमन करते कह दीया कि अब हमको न बुलाना न हम आवेगे यह बात एक कथाके अन्दर है. अगर कोणकने दिगविजयका प्रयाणके समय कृतव्य रत्न बनाया हो तो. भी बन सक्ता है.
जब चेटकराजाका दल कमजोर होगया और वहभि जान