________________
संग्रामका क्या हुवा, उसके लिये यहां पर भगवती सूत्र शतक ७ उद्देशा ९ से सबन्ध लिखा जाता है. ____नोट-जब दश दिनो कोणक राजाके दशों योद्धा संग्राममें काम आगये तब कोणकने विचारा कि एक दीनका काम और है क्योंकि चेटक राजाका बाण अचुक है. जेसे दश दिनों में दश भाइयोंकी गति हुइ है वह एक दिन मेरे लीये ही होगा वास्ते कुच्छ दूसरा उपाय सोचना चाहीये. एसा विचार कर कोणक राजाने अष्टम तप ( तीन उपवास ) कर स्मरण करने लगा कि अगर कीसी भी भवमें मुझे वचन दीया हो, वह इस बखत आके मुझे सहायता दो एसा स्मरण करनेसे 'चमरेन्द्र' और 'शकेन्द्र यह दोनों और कोणक राजा कीसी भवमे तापस थे उस बखत इन दोनो इन्द्रोने वचन दीया था, इस कारण दोनों इन्द्र आये, कोणकको बहुत समझाये कि यह चेटक राजा तुमारा नानाजी है अगर तुं जीत भी जायगा तो भी इसीके आगे हारा जेसाही होगा वास्ते इस अपना हठको छोड दे । इतना कहने पर भी कोणकने नहीं माना ओर इन्द्रोंसे कहा कि यह हमारा काम आपको करना ही होगा । इन्द्र वचनके अन्दर बन्धे हुवे थे। वास्ते कोणकका पक्ष करना ही पडा।
भगवती सूत्र-पहले दिन महाशीलाकंटक नामका संग्राम के अन्दर कोणक राजाके उदयण नामके हस्तीपर चम्मर ढोलाता हुवा कोणक राजा बेठा और शक्रेन्द्र अगाडी एक अभेद नामका शस्त्र लेके बेठ गया था जिसीसे दूसरोंका बाणादि शस्त्र कोणकको नही लगे और कोणककी तर्फसे तृण काष्ट कंकर भी फेंके तो चेटक राजाकी सेना पर महाशीलाकी माफीक मालम होता था। इन्द्रकी सहायतासे प्रथम दिनके संग्राममें ८४००००० मनुष्योंका क्षय हुवा