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१२६ विगर पुच्छा आया है तो आप कृपाकर हारहस्ती और वहलकुमारको वापीस भेज दीरावे ।
दूत वैशाला जा के राजा चेटकको नमस्कार कर कोणकका संदेसा कह दीया उसके उत्तरमें राजा चेटक बोला कि हे दूत ! तुम कोणकको कहदेना कि जेसे श्रेणिकराजाका पुत्र चेलना देवीका अंगज कोणक है एसाही श्रेणिकराजाका पुत्र चेलना. राणीका अंगज वहलकुमार है इन्साफ कि वात यह है कि हारहस्ती अवल तो कोणकको लेना ही नही चाहिये क्यों कि वहलकुमर कोणकका लघु भ्रात. है और माता पितावोंने दिया हुवा है अगर हारहस्ती लेना ही चाहते हो तो आधा राज वहलकुमरको दे देना चाहिये। इस दोनों बातोंसे एक बात कोणक मंजर करता हो तो हम वहलकुमरको चम्पानगरी भेज सक्ते है इतना कहके दूतको वहांसे विदाय कर दीया।
दूत वैशाला नगरीसे रवाना हो चम्पानगरी कोणकराजाके पास आयके सब हाल सुना दिया और कह दिया कि चेटकराजा वहलकुमारको नही भेजेगा. इसपर कोणकराजाको और भी गुस्सा हुवा. तब दूतको बुलायके कहा कि तुम वैशाला नगरी जावो. चेटकराजा प्रत्ये कहना कि आप वृद्ध अवस्थामें ही राजनीतिके जानकार हो. आप जानते हो कि राजमें कोई प्रकारके पदार्थ उत्पन्न होते है. वह सब राजाका. ही होता है तो आप हारहस्ती और वहल कुमारको कृपा कर भेज दीरावे. इत्यादि कहके दूतको दुसरीवार भेजा.
दूत कोणकराजाका आदेशको सविनय स्वीकार कर दुसरी फे वैशाला नगरी गया. सब हाल चेटकराजाको सुना दिया. दुसरो दफे चेटकराजाने वही उत्तर दिया कि मेरे तो कोणक